Busimess

एक पुरानी कहावत है कि इस दुनिया में किसी भी बात को ठीक से समझना हो तो सबसे सुगम उपाय है उसे दूसरों को समझाना. जब दूसरे को समझाया जाता है तब एक तटस्थता का भाव पैदा होता है, एक साक्षी भाव का उदय होता है. दूसरा ऐसे ही तो समझ नहीं जायेगा, वो हजार तर्क उठाएगा, विरोध करेगा, इंकार करेगा. तो इस समझाने में उसके सारे इनकारों को खंडित करना पड़ेगा, उसके सारे तर्कों को तोडना होगा, उसके विचार के जाल को काटना पड़ेगा.

इस सारी प्रक्रिया में मेरे भी सारे संदेह कटेंगे, मेरे भीतर छाया संदेह का कुहासा भी छंटेगा. और यदि मैं समर्थ हो सका दूसरे को समझाने में तो मुझे स्वयं पर आस्था जगेगी, स्वयं पर श्रद्धा उमगेगी.

इसलिए मेरा सारा लेखन या मेरी फोटोग्राफी मेरी स्वयं की तलाश का माध्यम भर है. ‘मैं कौन हूँ’, ये जानने की गहन प्यास और जिज्ञासा है जो मुझे निरंतर लिखने को प्रेरित करती रहती है. स्वयं को जानने की उत्कट अभिलाषा के कारण कभी कोई कथा जन्म लेती है तो कभी कोई लेख. बनारस के घाटों और उसकी पतली गलियों में विचरते हुए जब कैमरे का शटर दबता है तो भी तलाश खुद की ही होती है.

आजीविका के लिए पैंतीस साल ग्रामीण बैंक को समर्पित किया और सम्प्रति लिखने की कोशिश में संलग्न हूँ. शरद के साथ कबीर इसलिए जुड़ गया कि कबीर भी झूठी वर्जनाओं के मुखर विरोधी थे और कुछ हद तक मैं भी. कैमरे से लगाव बचपन से था पर उसे कभी शौक की तरह नहीं ले सका था. नौकरी से सेवा-निवृत्त होने के बाद ये मेरा मुख्य शगल है. काशी की गलियों और घाटों पर विचरते हुए फोटो के माध्यम से कहानी और काशी का अध्यात्मिक स्वरुप ढ़ूंढ़ने की कोशिश करता हूँ. फोटो समय को कैद करने का सबसे सशक्त माध्यम है.फोटो खींचते समय हम सिर्फ विषय को ही नहीं खींचते वरन उस समय को भी कैद करते हैं जो फिर वापस नहीं आने वाला. इसलिए अलग-अलग शौक होने के कारण सारा कुछ बहुत अराजक हो गया. इसी अराजकता को तरतीब देने, ढ़ब देने या व्यवस्था देने का प्रयास ये वेबसाइट है. शेष निर्णायक तो आप सब ही हैं. आपके सुझाव, आपकी समालोचना मुझे और बेहतर ढ़ंग से व्यक्त करने में मददगार होगी.

ॠचो अक्षरे परमे व्योमन्, यस्मिन देवा अधि विश्वे निषेदु: I
यस्तं न वेद किमृचा करिष्यति, य इत् दद् विदुस्त इमे समासते II

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